NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 12 Yashpal

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What will you learn in Kshitij Chapter 12?

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लखनवी अंदाज़ क्षितिज भाग – 2 सार

लेखक को पास में ही कहीं जाना था। लेखक ने यह सोचकर सेकंड क्लास का टिकट लिया की उसमे भीड़ कम होती है, वे आराम से खिड़की से प्राकृतिक दृश्य देखते हुए किसी नए कहानी के बारे में सोच सकेंगे।

पैसेंजर ट्रेन खुलने को थी। लेखक दौड़कर एक डिब्बे में चढ़े परन्तु अनुमान के विपरीत उन्हें डिब्बा खाली नही मिला।

डिब्बे में पहले से ही लखनऊ की नबाबी नस्ल के एक सज्जन पालथी मारे बैठे थे, उनके सामने दो ताजे चिकने खीरे तौलिये पर रखे थे।

लेखक का अचानक चढ़ जाना उस सज्जन को अच्छा नही लगा। उन्होंने लेखक से मिलने में कोई दिलचस्पी नही दिखाई।

लेखक को लगा शायद नबाब ने सेकंड क्लास का टिकट इसलिए लिया है ताकि वे अकेले यात्रा कर सकें परन्तु अब उन्हें ये बिल्कुल अच्छा नही लग रहा था की कोई सफेदपोश उन्हें मँझले दर्जे में सफर करता देखे।

उन्होंने शायद खीरा भी अकेले सफर में वक़्त काटने के लिए ख़रीदा होगा परन्तु अब किसी सफेदपोश के सामने खीरा कैसे खायें। नबाब साहब खिड़की से बाहर देख रहे थे परन्तु लगातार कनखियों से लेखक की ओर देख रहे थे।

अचानक ही नबाब साहब ने लेखक को सम्बोधित करते हुए खीरे का लुत्फ़ उठाने को कहा परन्तु लेखक ने शुक्रिया करते हुए मना कर दिया।
नबाब ने बहुत ढंग से खीरे को धोकर छिले, काटे और उसमे जीरा, नमक-मिर्च बुरककर तौलिये पर सजाते हुए पुनः लेखक से खाने को कहा किन्तु वे एक बार मना कर चुके थे इसलिए आत्मसम्मान बनाये रखने के लिए दूसरी बार पेट ख़राब होने का बहाना बनाया।
लेखक ने मन ही मन सोचा कि मियाँ रईस बनते हैं लेकिन लोगों की नजर से बच सकने के ख्याल में अपनी असलियत पर उतर आयें हैं।
नबाब साहब खीरे की एक फाँक को उठाकर होठों तक ले गए, उसको सूँघा। खीरे की स्वाद का आनंद में उनकी पलकें मूँद गयीं। मुंह में आये पानी का घूँट गले से उतर गया, तब नबाब साहब ने फाँक को खिड़की से बाहर छोड़ दिया।
इसी प्रकार एक-एक करके फाँक को उठाकर सूँघते और फेंकते गए।
सारे फाँको को फेकने के बाद उन्होंने तौलिये से हाथ और होठों को पोछा। फिर गर्व से लेखक की ओर देखा और इस नायब इस्तेमाल से थककर लेट गए।
लेखक ने सोचा की खीरा इस्तेमाल करने से क्या पेट भर सकता है तभी नबाब साहब ने डकार ले ली और बोले खीरा होता है लजीज पर पेट पर बोझ डाल देता है।
यह सुनकर लेखक ने सोचा की जब खीरे के गंध से पेट भर जाने की डकार आ जाती है तो बिना विचार, घटना और पात्रों के इच्छा मात्र से नई कहानी बन सकती है।लेखक परिचय

यशपाल

इनका जन्म सन 1903 में पंजाब के फिरोजपुर छावनी में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा काँगड़ा में ग्रहण करने के बाद लाहौर के नेशनल कॉलेज से बी.ए. किया। वहाँ इनका परिचय भगत सिंह और सुखदेव से हुआ।

स्वाधीनता संग्राम की क्रांतिकारी धारा से जुड़ाव के कारण ये जेल भी गए। इनकी मृत्यु सन 1976 में हुई।

प्रमुख कार्य

कहानी संग्रह – ज्ञानदान, तर्क का तूफ़ान, पिंजरे की उड़ान, वा दुलिया, फूलों का कुर्ता।
उपन्यास – झूठा सच, अमिता, दिव्या, पार्टी कामरेड, दादा कामरेड, मेरी तेरी उसकी बात।

कठिन शब्दों के अर्थ

• मुफ़स्सिल – केंद्र में स्थित नगर के इर्द-गिर्द स्थान
• उतावली – जल्दबाजी
• प्रतिकूल – विपरीत
• सफ़ेदपोश – भद्र व्यक्ति
• अपदार्थ वस्तु – तुच्छ वस्तु
• गवारा ना होना – मन के अनुकूल ना होना
• लथेड़ लेना – लपेट लेना
• एहतियात – सावधानी
• करीने से – ढंग से
• सुर्खी – लाली
• भाव-भंगिमा – मन के विचार को प्रकट करने वाली शारीरिक क्रिया
• स्फुरन – फड़कना
• प्लावित होना – पानी भर जाना
• पनियाती – रसीली
• तलब – इच्छा
• मेदा – पेट
• सतृष्ण – इच्छा सहित
• तसलीम – सम्मान में
• सिर ख़म करना – सिर झुकाना
• तहजीब – शिष्टता
• नफासत – स्वच्छता
• नफीस – बढ़िया
• एब्सट्रैक्ट – सूक्ष्म
• सकील – आसानी से ना पचने वाला
• नामुराद – बेकार चीज़
• ज्ञान चक्षु – ज्ञान रूपी नेत्र

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