Class 11 Hindi Aroh NCERT Solutions for Chapter 1 (Updated for 2021-22)

NCERT Solutions For Class 11 Hindi Aroh Chapter 1

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NCERT Solutions for Class 11 Hindi Aroh Chapter 1 PDF

NCERT Solutions for Class 11 Hindi Aroh Chapter 1

 

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NCERT Solutions for Class 11 Hindi Aroh Chapter 1: Overview

Hindi Aroh Class 11

Hindi Aroh is a book that is recommended for students in Class 11 who are studying Hindi. Students will find numerous chapters and previously unseen passages in this book. This book belongs in the literary category. As a result, it is recommended that students read the stories or chapters referenced in the book several times.

This would enable the learner to recall the plots of the stories as well as specific information about the characters featured in the book. It’s also a good idea to go over the questions in the book’s exercise section again. Students will be better prepared for their future exams as a result of this.

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प्रश्न. 1.
दारोगा वंशीधर गैरकानूनी कार्यों की वजह से पंडित अलोपीदीन को गिरफ्तार करता है, लेकिन कहानी के अंत में इसी पंडित अलोपीदीन की सहृदयता पर मुग्ध होकर उसके यहाँ मैनेजर की नौकरी को तैयार हो जाता है। आपके विचार से वंशीधर का ऐसा करना उचित था? आप उसकी जगह होते तो क्या करते?
उत्तर:
वंशीधर ईमानदार व सत्यनिष्ठ व्यक्ति था। दारोगा के पद पर रहते हुए उसने पद के साथ नमकहलाली की तथा उस पद की गरिमा को ध्यान में रखते हुए ईमानदारी, सतर्कता से कार्य किया। उसने भारी रिश्वत को ठुकरा कर पंडित अलोपीदीन जैसे प्रभावी व्यक्ति को गिरफ्तार किया। उसने गैरकानूनी कार्य को रोका।
उसी अलोपीदीन ने जब उसे अपनी जायदाद का मैनेजर बनाया तो वह उसकी नौकरी करने के लिए तैयार हो गया। वह पद के प्रति कर्तव्यनिष्ठ था। उसकी जगह हम भी वही करते जो वंशीधर ने किया।

प्रश्न. 2.
नमक विभाग के दारोगा पद के लिए बड़ों-बड़ों का जी ललचाता था। वर्तमान समाज में ऐसा कौन-सा पद होगा जिसे पाने के लिए लोग लालायित रहते होंगे और क्यों?
उत्तर:
वर्तमान समाज में भ्रष्टाचार के लिए तो सभी विभाग हैं। यदि आप भ्रष्ट हैं तो हर विभाग में रिश्वत ले सकते हैं। आज भी पुलिस विभाग सर्वाधिक बदनाम है, क्योंकि वहाँ सभी लोगों से रिश्वत ली जाती है। न्याय व रक्षा के नाम पर भरपूर लूट होती है।

प्रश्न. 3.
अपने अनुभवों के आधार पर बताइए कि जब आपके तर्को ने आपके भ्रम को पुष्ट किया हो।
उत्तर:
ऐसा जीवन में अनेक बार हुआ है। अभी पिछले दिनों हिंदी अध्यापिका ने कहा कि ‘कल आप लोग कॉपी किताब लेकर मत आना’ यह सुनकर मैंने सोचा ऐसा तो कभी हो नहीं सकता कि हिंदी की अध्यापिका न पढ़ाएँ। कहीं ऐसा तो नहीं कि कल अचानक परीक्षा लें ? और वही हुआ। कॉपी किताब के अभाव में हमारा टेस्ट लिया गया। मुझे जिस बात का भ्रम था, वही पुष्ट हो गया।

प्रश्न. 4.
पढ़ना-लिखना सब अकारथ गया। वृद्ध मुंशी जी द्वारा यह बात एक विशिष्ट संदर्भ में कही गई थी। अपने निजी अनुभवों के आधार पर बताइए –
(क) जब आपको पढ़ना-लिखना व्यर्थ लगा हो।
(ख) जब आपको पढ़ना-लिखना सार्थक लगा हो।
(ग) “पढ़ना-लिखना’ को किस अर्थ में प्रयुक्त किया गया होगाः
साक्षरता अथवा शिक्षा? क्या आप इन दोनों को समान मानते हैं?
उत्तर:
(क) कबीर की साखियाँ और सबद पढ़ते समय जब मुझे यह ज्ञात हुआ कि कबीर किसी पाठशाला में नहीं गए तो मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि ऐसा ज्ञानी संत बिना पढ़ा था तो हम ने पढ़कर क्या लाभ उठाया? जब अंत में ईश्वर से संबंध ही जीवन का उद्देश्य है तो पढ़ना लिखना क्या? दूसरी बात यह कि जब भारत का खली नामक भीमकाय रैसलर विश्व चैंपियन बना तभी मुझे पता लगा कि वह बिलकुल पढ़ा-लिखा नहीं है। यह सुनकर लगा कि बिना पढ़े भी धन और ख्याति प्राप्त किए जा सकते हैं।
(ख) मेरे पड़ोस में एक अम्मा जी रहती हैं। उनके दोनों बेटे विदेश में रहते हैं। उनकी चिट्ठी, ई-मेल आदि सब अम्मा जी के लिए हम पढ़कर सुनाते हैं तो हमें लगता है कि हमारा पढ़ा-लिखा होना सार्थक है।
(ग) यहाँ पढ़ना-लिखना को शिक्षा देने के अर्थ में प्रयुक्त किया गया है।

पढ़ना-लिखना –

  • साक्षरता-जिसे अक्षर ज्ञान हो।
  • शिक्षा-जो शिक्षित हो।

प्रश्न. 5.
‘लड़कियाँ हैं, वह घास-फूस की तरह बढ़ती चली जाती हैं।’ वाक्य समाज में लड़कियों की स्थिति की किस वास्तविकता को प्रकट करता है?
उत्तर:
यह वाक्य समाज में लड़कियों की हीन दशा को व्यक्त करता है। लड़कियों के युवा होते ही माता-पिता को उनके विवाह आदि की चिंता सताने लगती है। विवाह के लिए दहेज इकट्ठा करना पड़ता है। इनसे परिवार को कोई आर्थिक लाभ नहीं होता।

प्रश्न. 6.
इसलिए नहीं कि अलोपीदीन ने क्यों यह कर्म किया बल्कि इसलिए कि वह कानून के पंजे में कैसे आए। ऐसा मनुष्य जिसके पास असाध्य साधन करनेवाला धन और अनन्य वाचालता हो, वह क्यों कानून के पंजे में आए। प्रत्येक मनुष्य उनसे सहानुभूति प्रकट करता था।-अपने आस-पास अलोपीदीन जैसे व्यक्तियों को देखकर आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी? उपर्युक्त टिप्पणी को ध्यान में रखते हुए लिखें।
उत्तर:
वर्तमान समाज में किसी राजनेता को सजा हो हमें आश्चर्य होगा, क्योंकि ये लोग भ्रष्ट तो हैं ही यह तो समस्त जनता जानती है, पर इन्हें सजा होना हैरत की बात होगी।

समझाइए तो ज़रा

प्रश्न. 1.
नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर की मज़ार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए।
उत्तर:
इसका अर्थ है कि पद ऊँचा हो यह जरूरी नहीं है, लेकिन जहाँ ऊपरी आय अधिक हो उसे स्वीकार कर लेना। इसका मतलब मान से भी ज्यादा धन कमाने का प्रयत्न करना।

प्रश्न, 2.
इस विस्तृत संसार में उनके लिए धैर्य अपना मित्र, बुधि अपनी पथ-प्रदर्शक और आत्मावलंबन ही अपना सहायक था।
उत्तर:
वंशीधर को अपने सद्गुणों जैसे धीरज, बुधि और आत्मविश्वास पर ही भरोसा था। वे सत्य की राह पर अपने बूते पर चलने वाले युवक थे।

प्रश्न. 3.
तर्क ने भ्रम को पुष्ट किया।
उत्तर:
वंशीधर की बुद्धि ने गाड़ियों के लिए जो वजह सोची वही सही निकली थी। इतनी रात गए गाड़ियाँ चोरी का माल लेकर नदी पर जाती थीं।

प्रश्न. 4.
न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं, इन्हें वह जैसे चाहती हैं, नचाती हैं।
उत्तर:
संसार में धन के बल पर न्यायालय में न्याय को अपने पक्ष में खरीदा जा सकता है। नैतिकता को धन के पैरों तले कुचला जा सकता है। ऐसी अलोपीदीन की पुष्ट धारणा थी।

प्रश्न. 5.
दुनिया सोती थी, पर दुनिया की जीभ जागती थी।
उत्तर:
कुछ समाचार दिन-रात, तार-बेतार के ऐसे ही फैल जाती है। खासतौर पर वे बातें जिनमें किसी की निंदा का आनंद मिल रहा हो तो बड़ी शीघ्रता से फैल जाती है।

प्रश्न. 6.
खेद ऐसी समझ पर! पढ़ना-लिखना सब अकारथ गया।
उत्तर:
वंशीधर के पिता ने नौकरी गवाँकर रिश्वत ठुकराकर लौटे बेटे की बुद्धि को कोसते हुए दुख प्रकट किया। उन्होंने जो भी सीख बेटे को दी थी उसे बेटे ने नहीं माना था। इस पर वे दुखी थे।

प्रश्न. 7.
धर्म ने धन को पैरों तले कुचल डाला।
उत्तर:
धर्म ऐसा अडिग खड़ा रहा कि धन का हर वार बेकार गया और अंत में धनी अलोपीदीन को गिरफ्तार होना पड़ा। यह उसके लिए पैरों तले कुचले जाने के बराबर था।

प्रश्न. 8.
न्याय के मैदान में धर्म और धन में युद्ध ठन गया।
उत्तर:
न्यायोचित बात का निर्णय होना था और यहाँ धर्म थे वंशीधर और धन थे अलोपीदीन, दोनों की हार-जीत का फैसला न्याय के मैदान में होना था।

भाषा की बात

प्रश्न. 1.
भाषा की चित्रात्मकता, लोकोक्तियों और मुहावरों का जानदार उपयोग तथा हिंदी-उर्दू के साझा रूप एवं बोलचाल की भाषा के लिहाज़ से यह कहानी अद्भुत है। कहानी में से ऐसे उदाहरण छाँट कर लिखिए और यह भी बताइए कि इनके प्रयोग से किस तरह कहानी का कथ्य अधिक असरदार बना है?
उत्तर:
(क) चित्रात्मकता-वकीलों ने फैसला सुना और उछल पड़े। पंडित अलोपीदीन मुस्कराते हुए बाहर निकले। स्वजन-बांधवों ने रुपयों की लूट की। उदारता का सागर उमड़ पड़ा। उसकी लहरों ने अदालत की नींव तक हिला दी। जब वंशीधर बाहर निकले तो चारों ओर से उनके ऊपर व्यंग्य बाणों की वर्षा होने लगी।
(ख) लोकोक्तियाँ व मुहावरे-पूर्णमासी का चाँद, प्यास बुझना, फूले नहीं समाए, पंजे में आना, सन्नाटा छाना, सागर उमड़ना, हाथ मलना, सिर पीटना, जीभ जगना, शूल उठना, जन्म भर की कमाई, गले लगाना, ईमान बेचना। कलवार और कसाई के तगादे सहें। सुअवसर ने मोती दे दिया। घर में अँधेरा, मस्जिद में उजाला, धूल में मिलना, निगाह बाँधना, कगारे का वृक्ष।
(ग) हिंदी-उर्दू का साझा रूप-बेगरज को दाँव पर लगाना जरा कठिन है। इन बातों को निगाह में बाँध लो।
(घ) बोलचाल की भाषा-‘कौन पंडित अलोपीदीन?’ ‘दातागंज के!’

प्रश्न. 2.
कहानी में मासिक वेतन के लिए किन-किन विशेषणों का प्रयोग किया गया है? इसके लिए आप अपनी ओर से दो-दो विशेषण और बताइए। साथ ही विशेषणों के आधार को तर्क सहित पुष्ट कीजिए।
उत्तर:
कहानी में मासिक वेतन को पूर्णमासी का चाँद कहा गया है-तर्क है उसका एक ही बार आना और घटते-घटते लुप्त हो जाना। हम उसे

  • खून पसीने की कमाई,
  • कर्म फल विशेषणों से पुकार सकते हैं।

तर्क – वेतन हमारी कड़ी मेहनत का परिणाम एवं हमारे द्वारा किए गए कार्यों का ही परिणाम है।

प्रश्न. 3.
(क) बाबूजी आशीर्वाद!
(ख) सरकार हुक्म!
(ग) दातागंज के!
(घ) कानपुर!
दी गई विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ एक निश्चित संदर्भ में अर्थ देती हैं। संदर्भ बदलते ही अर्थ भी परिवर्तित हो जाता है। अब आप किसी अन्य संदर्भ में इन भाषिक अभिव्यक्तियों का प्रयोग करते हुए समझाइए।
उत्तर:
(क) बाबू जी! आपका आशीर्वाद चाहिए।
(ख) मोहन को सरकारी हुक्म हुआ है।
(ग) राम दातागंज के रहने वाले हैं।
(घ) यह सड़क कानपुर की तरफ जाती है।

चर्चा करें

प्रश्न. 1.
इस कहानी को पढ़कर बड़ी-बड़ी डिग्रियों, न्याय और विद्वता के बारे में आपकी क्या धारणा बनती है? वर्तमान समय को ध्यान में रखते हुए इस विषय पर शिक्षकों के साथ एक परिचर्चा आयोजित करें।
उत्तर:
इस विषय पर सहपाठियों के साथ मिलकर चर्चा का आयोजन कीजिए।

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न. 1.
पंडित अलोपीदीन का इलाके में कैसा प्रभाव था?
उत्तर:
पंडित अलोपीदीन अपने इलाके के बड़े प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित जमींदार थे जो लाखों रुपयों का लेन-देन करते थे तथा धन को ही सब कुछ मानते थे। प्रत्येक व्यक्ति उनसे बहुत प्रभावित था और उनका ऋणी भी था। वे प्रत्येक व्यक्ति को धन का। लालच देकर उन्हें अपनी मुट्ठी में कर लेते और उन्हें कठपुतलियाँ बनाकर नचाते हुए उनसे सभी सही-गलत काम करवाते थे। इसी प्रकार सभी उनसे मोहित थे। इलाके का न्यायालय, वकील, पुलिस आदि सब उनके गुलाम थे।

प्रश्न. 2.
यह कहानी सद्गुणों के प्रभाव की कहानी है, कैसे?
उत्तर:
प्रस्तुत कथन-“यह कहानी सद्गुणों के प्रभाव की कहानी है”–पूर्णतः सत्य है। इस कहानी का नायक वंशीधर वास्तव में एक ऐसा व्यक्ति है जिसमें प्राय: सभी सद्गुणों का निवास है; जैसे-आज्ञाकारी पुत्र, ईमानदार, परिश्रमी, कर्तव्यनिष्ठ, दृढ़ चरित्र वाला आदि। दूसरी ओर अलोपीदीन जिसने .सदा झूठ, बेईमानी और धोखाधड़ी से ही जीवन गुजारा अपने असीमित धन से वंशीधर जैसे व्यक्ति को खरीदना चाहता था, किंतु अंत में वंशीधर के गुणों से प्रभावित होकर उसने उसे अपने ही यहाँ पर एक ऐसे पद के लिए नियुक्त किया जिसके लिए वंशीधर जैसे विश्वसनीय और ईमानदार व्यक्ति की आवश्यकता थी। इसलिए यह एक सद्गुणों के प्रभाव की कहानी है। इसमें सद्गुणों के प्रभाव में आकर अवगुणों ने घुटने टेक दिए।

प्रश्न. 3.
वंशीधर की बातों को सुनकर पंडित अलोपीदीन स्तंभित क्यों रह गए?
उत्तर:
पंडित अलोपीदीन को लक्ष्मी जी पर अखंड विश्वास था। वे धन के सहारे को चट्टान समझते थे, क्योंकि उनका मानना था कि जब तक धन हो तब तक कोई तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता, किंतु जब गैर-कानूनी ढंग से नमक की बोरियाँ ले जाते हुए उन्हें नमक के दारोगा मुंशी वंशीधर द्वारा रंगे हाथों पकड़ लिया गया और उन्होंने उसे धन का लालच देकर उनसे पीछा छुड़ाना चाहा, किंतु वंशीधर ने धन स्वीकार करने से मना कर दिया, तब पंडित अलोपीदन स्तंभित रह गए, क्योंकि अपने जीवन में उन्होंने पहली बार ऐसा मनुष्य देखा था जिसे धन का लालच न हो और जो धन से ज्यादा अपने धर्म का पालन करता हो। जो धन को देखकर डगमगाए न और जिसे धन अपने कर्तव्य-पथ से भटका नहीं सकता।

प्रश्न. 4.
वंशीधर के वृद्ध पिता अलोपीदीन से लल्लो-चप्पो की बातें क्यों करने लगे?
उत्तर:
वंशीधर के वृद्ध पिता पंडित अलोपीदीन से लल्लो-चप्पो अर्थात् चमचागिरी की बातें इसलिए करने लगे, क्योंकि वे जानते थे ‘कि वे बहुत बड़े और प्रतिष्ठित व्यक्ति थे और अगर उन्होंने उनका अपमान किया तो उनका जीना मुश्किल हो जाएगा। इसके अतिरिक्त वे यह भी जानते थे कि वे बहुत प्रभावशाली व्यक्ति हैं और उनके पास बहुत अधिक धन-सम्पत्ति है। इसलिए यदि वे उनको प्रसन्न रखते हैं तो कदाचित् उन्हें भी उनकी जायदाद का कुछ हिस्सा मिल सकता है। वे तो यह भी मानते थे कि उनका लड़का महामूर्ख है जिसने ऐसे प्रतिष्ठित धनी और धन को ठुकराया है, जिन्हें सब पूजते हैं। अतः धन के लोभी और हीनभाव से ग्रस्त होकर लल्लो-चप्पो की बातें करने लगे।

प्रश्न. 5.
पंडित अलोपीदीन ने वंशीधर को अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर क्यों नियुक्त कर दिया?
उत्तर:
पंडित अलोपीदीन ने देखा कि वंशीधर एक ईमानदार व्यक्ति हैं, जिन्हें धन भी अपने कर्तव्यपथ से नहीं हटा सकता, क्योंकि जब वे गैर-कानूनी तरीके से नमक की बोरियाँ ले जा रहे थे और उन्हें वंशीधर द्वारा रंगे हाथों पकड़ लिया गया। उनसे बचने के लिए पंडित अलोपीदीन ने उन्हें धन का लालच देना चाहा तब भी वे धन लेकर उन्हें आजाद करने के लिए राजी नहीं हुए और अपने धर्म का पालन करते हुए हिरासत में ले लिया। अतः इससे वे जान गए कि वंशीधर एक धर्मनिष्ठ और कर्तव्यपरायण व्यक्ति हैं जिन्हें धन का कोई लोभ नहीं था। इसलिए वे जान गए कि वंशीधर ने निस्स्वार्थ भाव से कार्य कर सकते हैं। पंडित अलोपीदीन के पास बहुत अधिक जायदाद थी। इसलिए उनको उसके लेन-देन को सँभालने के लिए एक ईमानदार और जिम्मेदार व्यक्ति की खोज थी जिस पर उनकी नज़रों में केवल वंशीधर ही खरे उतर पाए। इसलिए अलोपीदीन ने वंशीधर को अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर नियुक्त किया।

प्रश्न. 6.
वंशीधर के पिता ने किन बातों को गिरह में बाँधने की सीख दी?
उत्तर:
वंशीधर के पिता ने निम्नलिखित बातों को गिरह में बाँधने की सीख वंशीधर को दी

  1. ओहदे पर ऐसे नजर रखनी चाहिए जैसे पीर के मजार पर।
  2. मजार पर चढ़-चढ़ावे और चादर की तरह ऊपरी कमाई पर ओहदे से ज्यादा ध्यान देना चाहिए।
  3. जिस आदमी को तुमसे काम हो उससे कठोरता से पेश आना चाहिए और उससे जहाँ तक हो सके पैसे खींचना चाहिए।
  4. बेगरजे आदमी से अर्थात् उन लोगों से जिन्हें तुमसे काम न हो, विनम्रता से पेश आना चाहिए, क्योंकि वे तुम्हारे किसी काम के नहीं हैं।

प्रश्न. 7.
रोजगार की खोज में निकलने से पूर्व वंशीधर के घर की हालत कैसी थी?
उत्तर:
रोजगार की खोज में निकलने से पूर्व वंशीधर के घर की हालत बहुत बुरी थी। उनके पिता एक साधारण पद पर नियुक्त थे तथा उनका मासिक वेतन बहुत कम था। यह धन मास के प्रारंभ में ही समाप्त हो जाता और फिर उनके घर रोजी-रोटी के लाले पड़ते थे। इसके अतिरिक्त वे ऋण के बोझ से दबे हुए थे और उनके पिता का स्वास्थ्य भी अच्छा नहीं था। घर में लड़कियाँ घास-फूस की तरह बढ़ रही थीं और पिता कगार के वृक्ष हो चुके थे। आर्थिक विपन्नता ने सब को रुला रखा था।

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  • Chapter-2 Miyan Nasiruddin
  • Chapter-3 Apu Ke Saath Dhai Saal
  • Chapter-4 Bidai sambhasan
  • Chapter-5 Galta Loha
  • Chapter-6 Spiti Mein Barish
  • Chapter-7 Rajni
  • Chapter-8 Jamun Ka Pedh
  • Chapter-9 Bharat Mata
  • Chapter-10 Aatma Ka Taap
  • Chapter 11 Poem – Kbeer ke pad
  • Chapter 12 Poem – Meera ke pad
  • Chapter 13 Poem – Pathik
  • Chapter 14 Poem -Weh Ankhe
  • Chapter 15 Poem – Ghar ki yaad
  • Chapter 16 Poem – Champa kale kale akshar nehi chinhati
  • Chapter 17 Poem – Gazal
  • Chapter 18 Poem – Hey Bhukh! Mat machal, Hey mere juhi k phool jaise eshwar
  • Chapter 19 Poem – Sabse Khatarnak
  • Chapter 20 Poem – Aao milke bachaye

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The literature section is for a total of 44 marks in the final exam.

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